मुह्पत्ति यहा एक अनिवार्या अंश है जैन परंपरा का.
सदियो से जैन मुनि, साध्वी , श्रावक व श्रीवीका इसका उपयोग सामयिक , पूजा , प्रवचन व अन्य क्रिया के समय मे इसका इस्तेमाल करते है.
जिस से की बोलते वक्त मूह मे कोई जीव आके मार ना जाए, अहिंसा का पालन हो और अशातना से बचा जा सके.
यहा वाणी मे संयम रखना सिखाता है.
जैन परंपरा का बहुत ही अमूल्य प्रतीक है.
मुह्पत्ति की प्रभावना कर के उच पुण्य फल की प्राप्ति करे.