इस घृत की शरीर पर मालिश करने से समस्त प्रकार के कुष्ठ,
दाद, पामा, विचर्चिका, शुक्र दोष, विसर्प, वातसक्त-जनित विस्फोट, सिर के फोड़े, उपदंश, नाड़ी
व्रण, शोथ, भगन्दर, मकड़ी के विष-जनित फफोले आदि विकार नष्ट होते हैं। यह घृत व्रणशोधक,
व्रणरोपक और व्रण वस्तु (फोड़ों के दानों) को मिटाकर त्वचा के वर्ण को सुधारता हैं।<\/p>\r\n
उपयोग विधि - मुख्य<\/strong> घटक - <\/p>\r\n
<\/strong>यह घृत मरहम की तरह लगाने के काम आता है।<\/p>\r\n
<\/strong>गौघृत, कासीस, हल्दी, दारुहल्दी, नागरमोथा, अशुद्ध हरिताल, अशुद्ध मैनसिल, कबीला, अशुद्ध
गन्धक, वायविडंग, अशुद्ध गुग्गुल, मोम, काली मिर्च, कूठ, अशुद्ध तूतियां, सफेद सरसों, रसौत,
सिन्दूर, गाल, लालचन्दन, इरिमेद की छाल, नीम की पत्ती, करंज के बीज, अनन्तमूल, बच, मंजीठ,
मुलेठी, \'जटामांसी, सिरस की छाल, पद्मकाष्ठ, हरड़, पंवाड के बीज।<\/p>\r\n<\/p>\r\n<\/div>\r\n<\/div>\r\n<\/div>\r\n<\/div>\r\n