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दादा कुशल गुरुदेव स्तवन

Dada Kushal Gurudev Stavan

कुशल गुरु क्यों न देते हो, कहो दर्शन मुझे अपना।
अगर जो दूर रहना था, बनाया दास क्यों अपना ।।टेर।।
 
तुम्हारा मैं हुआ जब से, सदा तब से तड़फता हूँ।
न तड़फाना तुम्हें लाजिम, दरश दो देव बस अपना ।।१।।
 
जलीलों को जलाना ही, अगर मंजूर है तुमको ।
विरुद तब दीन बंधु का, रखा फिर नाथ क्यों अपना ।।२।।
 
मुसीबत मेट दो मेरी, दरश दो क्यों करो देरी।
गुजारिश है कवीन्द्रों की, निभालो नेह बस अपना ।।३।।

 
-: नवकारशी का पच्चक्खाण :-
 
उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं मुट्टिसहियं पच्चक्खामि, चउव्विहंपि
आहारं असणं पाणं, खाइमं साइमं अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं
वोसिरामि।

Source-
Book Name: कुशल-विचक्षण ज्ञानाञ्जली
 
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