Friday, 27 June, 2025
जय जय गुरुदेवा, आरती मंगल मेवा,
आनंद सुख लेवा, जय जय गुरुदेवा ।
एक व्रत, दोय व्रत, तीन चार व्रत, पंचम व्रत सोहे,
भाविक जीव निस्तारण, सुरनर मन मोहे ।
दु:ख दोहग सब हर कर सद् गुरु राजन प्रतिबोधे,
सुत लक्ष्मी वर देकर, श्रावक कुल सोधे ।
विध्या पुस्तक धरकर सद गुरु, मुगल पूत तारें,
बस कर जोगिनी चौंसठ,पाँच पीर सारे ।
बीज पढंती वारी सदगुरु, समुद्र जहाज तारी,
वीर किया वश बावन, प्रगटे अवतारी ।
जिनदत्त जिनचन्द्र कुशल सुरिश्वर, खरतरगच्छ राजा,
चोरासी गच्छ पूजे मनवांछित ताजा ।
मन शुद्ध आरती कष्ट निवारण सद गुरु की कीजे,
जो मांगे सो पावे, जग मे यश लीजे ।
विक्रमपुर मे भक्त तुम्हारों, मंत्र कलाधारी,
नित उठ ध्यान लगावत, मनवांछित फल पावत, राम ऋद्धि सारी ।
जय जय गुरुदेवा, आरती मंगल मेवा,
आनंद सुख लेवा, जय जय गुरुदेवा ।।