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जय जय गुरुदेवा

जय जय गुरुदेवा, आरती मंगल मेवा,
आनंद सुख लेवा, जय जय गुरुदेवा ।

एक व्रत, दोय व्रत, तीन चार व्रत, पंचम व्रत सोहे,
भाविक जीव निस्तारण, सुरनर मन मोहे ।

दु:ख दोहग सब हर कर सद् गुरु राजन प्रतिबोधे,
सुत लक्ष्मी वर देकर, श्रावक कुल सोधे ।

विध्या पुस्तक धरकर सद गुरु, मुगल पूत तारें,
बस कर जोगिनी चौंसठ,पाँच पीर सारे ।

बीज पढंती वारी सदगुरु, समुद्र जहाज तारी,
वीर किया वश बावन, प्रगटे अवतारी ।

जिनदत्त जिनचन्द्र कुशल सुरिश्वर, खरतरगच्छ राजा,
चोरासी गच्छ पूजे मनवांछित ताजा ।

मन शुद्ध आरती कष्ट निवारण सद गुरु की कीजे,
जो मांगे सो पावे, जग मे यश लीजे ।

विक्रमपुर मे भक्त तुम्हारों, मंत्र कलाधारी,
नित उठ ध्यान लगावत, मनवांछित फल पावत, राम ऋद्धि सारी ।

जय जय गुरुदेवा, आरती मंगल मेवा,
आनंद सुख लेवा, जय जय गुरुदेवा ।।

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