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प्रभु स्तुति

Prabhu Stuti

(प्रभु प्रतिमा के सन्मुख बोली जाने वाली स्तुति)

पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले  |
स्वर्गेडपि यानि बिंबानि, तानि वंदे निरन्तरम् ।।

भावपूर्ण अंतर से प्रभुजी, करुं वंदना तुम चरणे |
त्रिविध ताप से दग्ध होकर, आया हूँ मैं तुम शरणे ||

करुणा सागर हे परमेश्वर, पावन करना मैं पापी |
परम भाव में तुम ले जाना, सारे कर्मों को काटी ||

करुं प्रार्थना हे परमेश्वर, रागद्वेष को हर लेना |
करुं विनति हे जगदीश्वर, कषाय वासना हर लेना ||
भव अटवी में भटक रहा हूँ, सच्चा ज्ञान बता देना |
परम शांति को मैं पाऊँ ऐसी राह दिखा देना ॥

दुस्तर है यह भवसागर, मिलता नहीं किनारा |
डूब न जाऊँ इसमें प्रभुजी, हाथ पकड़ना मेरा ||
तेरी शरण में आ जाने पर, हो जाता है छुटकारा |
चरण शरण में अब मैं रख दूं, अंतर का ये इकतारा ||

जो दृष्टि प्रभु दर्शन करे, उन नेत्र युग को धन्य है ।
जो जीभ जिनवर को भजे, उस जीभ को भी धन्य है ।।
पीए मुदा वाणी सुधा, उस कर्ण युगको धन्य है ।
प्रभु नाम मंत्र हृदय धरे, उस हृदय को भी धन्य है ।।

 

Source-
Book Name: कुशल-विचक्षण ज्ञानाञ्जली

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