Prabhu Tamara Pagle Pagle
प्रभु तमारा पगले पगले पा पा पगली मांडी छे,
हवे तो अक्षर पाडो हरिवर, मारी कोरी पाटी छे, (2)
बाळक छुं हुं मने खबर क्यां...
शुं छे साचुं जीवन?
पडी जाउं नां क्यांय प्रभु (2),
करो रोम रोम संजीवन,
सिंचन करजो मारा कण कण मां,
मारी सुक्की माटी छे प्रभु तमारा पगले पगले पा पा पगली मांडी छे,
बाळक पकडे मां नी आंगळी,
एम हुं जालुं छुं तमने,
वर्षा राणी भरे सरोवर (2),
एम भरी दो अमने,
अमे अमारी हथेळीओ मां,
मिलन नी रेखा आंकी छे प्रभु तमारा पगले पगले पा पा पगली मांडी छे|
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यह पाठ भक्ति और आत्मसमर्पण की भावना को व्यक्त करता है। इसका भावार्थ इस प्रकार है:
हे प्रभु, मैंने आपके चरणों के चरणचिन्हों पर अपनी पगली (छोटी सी पहचान) बनाई है। मेरी आत्मा को अब अक्षर (अविनाशी ज्ञान) से भर दो, क्योंकि मेरी आत्मा कोरी पट्टी (खाली स्लेट) के समान है।
मैं एक बालक हूँ, मुझे नहीं पता कि सच्चा जीवन क्या है। कहीं गिर न जाऊँ प्रभु, कृपया मेरी रक्षा करो।
मेरे रोम-रोम में चेतना भर दो, मेरे हर कण में सिंचन कर दो। मेरी आत्मा सूखी मिट्टी की तरह है, उसे जीवनदायिनी शक्ति दो।
जैसे एक बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़ कर चलता है, वैसे ही मैं भी तुम्हें थामे रहना चाहता हूँ।
जैसे बारिश से झील भर जाती है, वैसे ही मुझे अपने प्रेम और कृपा से भर दो। मेरी हथेली पर मैंने तुमसे मिलने की रेखा खींची है।
अर्थात, यह रचना आत्मसमर्पण, ज्ञान की प्यास, और प्रभु कृपा की प्रार्थना का सुंदर चित्रण है।
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