कल्लाणकंदं पढमं जिणिंदंसंतिं तओ नेमिजिणं मुणिदं,पासं पायसं सुगुणिक्कठाणं,भत्तीइ वंदे सिरि-वद्धमाणं ... १
मेरी विनती सुनलो दादा, क्यूँ नहीं सुनते पारस दादासुनलो, सुनलो जग के नाथनाकोड़ा के पारसनाथ, मेरी विनती स्वीकार करोहै दादा हमें भव से पार करो