आणी मनशुद्ध आस्ता, देव जुहारु शास्वता,
पार्श्वनाथ मनवांछितपुर, चितामणि म्हारी चिता चूर ॥१॥

अणयाली तोरी आंखड़ी, जाणे कमलतणी पांखड़ी
मुख दीठा दुख जावे दूर ------- चिंतामणि ||२||

को कहने को कहने नमे, म्हारामन मां तू ही जगमे
सदा जुहारु उंगते सूर ------- चिंतामणि ||३||

बिछड़िया बाल्हेसर मेल, बैरी - दुश्मन पाछा ठेल। 
तुं छे म्हारा हाजरा हजूर ------- चिंतामणि ॥४॥

एह स्त्रोत जे मन में धरे, तेहना काज सदाइ सरे।
आधि व्याधि दुःख जावे दूर ------- चिंतामणि ॥५॥

मुझ मन लागी तुमसूं प्रीत, दूजो कोय न आवे चित।
कर मुझ तेज प्रताप प्रचुर ------- चिंतामणि ॥६॥

भव २ देजे तुम पद सेव श्री चिंतामणि अरिहंत देव।
"समय-सुन्दर" कहे गुण भरपूर  ------- चिंतामणि  ||७||

- प्रकाशक- तेजकरण मरोठी, हिंगनघाट.