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दूर दूरथी तारा दरबारे आव्यो

door doorthi tara darbare aavyo

दूर दूरथी तारा दरबारे आव्यो मळवा तने हुं दादा तारे द्वारे
आव्यो। मळजो हो दादा मळजो हो मळजो दादा रे।
मळजो हो मळजो दादा रे ... दादा रे दादा रे ...

तु छे समर्थ दादा एवु में जाणयु हुँ छु अज्ञानी काई वधु नव
जाणू आव्यो छु तारे द्वारे लइने हैया मां आश थाशे मुजने
निरात कदी थाऊ ना निराश। एवा एवा मनसूबा घडी हुं
तो आव्यो ... मळजो हो मळजो ...

जन्मोजनमथी दादा मुजने तुं जाणे। प्रीत तारी मारी दादा
लोको शुं जाणे। कहेवू शुं जगने आज तारी मारी आ छे
वात साचवजे मुजने नाथ विनंती छे मारी आज अंतर नी
प्रार्थना तुं जाणे - अजाणे सुणजो हो सुणजो दादा रे ...
दादा रे दादा रे ....

करने कसोटी हवे बंध मारा दादा। कर्मो ना लेख हवे
बदल मारा दादा ! सहेवानी शक्ति खूटी जीवननी आश
तूटी लोको जाय लाज लूटी रडतो रझळतो हुं तो तारे द्वारे
आव्यो ... तारजो हो तारजो दादा रे ... दादा रे दादा रे ....

 

Source - Dur Dur Thi | Prashant Shah (Dikubhai)

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