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मंगल पाठ

mangal path

मंगल पाठ

"चत्तारिमंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलम्, 
साहु मंगलं, केवल पन्नतो धम्मो मंगलम्.
चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा,
साहु लोगुत्तमा, केवल पन्नतो धम्मो लोगुत्तमो. 
चत्तारि शरणं पवज्जामि, अरिहंते शरणं पवज्जामि,
सिद्धे शरणं पवज्जामि,
साहु शरणं पवज्जामि,
केवलि पन्नतं धम्मं शरणं पवज्जामि,
शिवमस्तु सर्वजगत; परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः 
दोषा प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकाः. 
सर्वथा सहु सुखी थाओ, पाप कोई न आचरो; 
रागद्वेषथी मुक्त थईने, मोक्ष सुख सहु जग वरो."

 

मंगल अर्थात् ??

मंगल का सीधा सरल अर्थ है, जिनसे हमारा कल्याण हो वही मंगल । मंगल यानी शुभ, पवित्र, पापरहित, विघ्नविनाशक पदार्थ या व्यक्ति। जो विघ्नों का विनाश करे वो मंगल । जो चित्त को प्रसन्न करें वो मंगल। जो इच्छित कार्यसिद्धि करायें वो मंगल l जो सुख की-पुण्य की परंपरा का विस्तार करें वो मंगल। जो जीवन में धर्म को खिंच लाये वो मंगल l जो जीव को संसार से मुक्ति दिलाये वो मंगल और जिसके द्वारा पूजा हो वो भी मंगल। 

 

मंगलः अनेक स्वरूप में अनेक प्रकार में -

अरिहंत परमात्मा सर्वोत्कृष्ट मंगल स्वरुप है। उनका नाम स्मरण, जप, जिनप्रतिमा तथा 8 प्रातिहार्य भी मंगल है। प्रभुमाता को आये हुए 14 स्वप्न तथा जिनपूजा के उपकरणें भी मंगलस्वरुप है। स्वप्नशास्त्र में दिखाएं गये 14 महास्वप्न, विविध शुभ मुद्राएं, चैत्यवृक्षादि कुछ वृक्ष इत्यादि भी मंगलस्वरुप है। मनुष्य के शरीर में विशेष कर हाथ-पाँव के तलवें में भिन्न-भिन्न रेखाओं की आकृतिओं को देखा जाता है। महापुरुष के शरीर में 32 उत्तम चिह्न और 80 लघु चिह्न थोड़ी-बहुत मात्रा में देखने को मिल सकतें हैं, जो भी मंगलस्वरुप है।
मंगल व्यक्तिरुप या खाद्यपदार्थ रुप भी होता है । फल या घासरुप, वाजिंत्र या पक्षी के ध्वनि स्वरुप भी होता है, वैसे मंगल आकृति स्वरुप भी होता है। अष्टमंगल मे स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त और मीनयुगल आकृति मंगल स्वरुप है। वर्धमानक, भद्रासन, पूर्णकलश और दर्पण आकृतिमंगल होते हुए वस्तुमंगल भी है। मंगल अनेक स्वरुप में और अनेक प्रकार में होता है l

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