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Library > जैन धर्म दर्शन
श्री आलोचना पाठ

बंदौं पॉचों परम गुरु, चौबीसों जिनराज ।
करुँ शुध्द आलोचना, शुध्दि करन के काज ॥
सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी ।
तिनकी अब निवृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा ॥

मंगल पाठ

चत्तारिमंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलम्, 
साहु मंगलं, केवल पन्नतो धम्मो मंगलम्.
चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा,
साहु लोगुत्तमा, केवल पन्नतो धम्मो लोगुत्तमो. 

तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ

काशी में जन्मे पार्श्वनाथ का जीवन एक सर्प-घटना से शुरू हुआ,
उन्होंने तपस्वी कमठ की अग्नि से सर्प युगल को बचाया, जो बाद में धरणेन्द्र बने।
कमठ ने मेघमाली देव के रूप में पार्श्वनाथ को घोर उपसर्ग दिए,
किंतु वे अविचल रहे और सम्मेतशिखर पर मोक्ष प्राप्त कर अमर हुए।

सामायिक के ३२ दोष

सामायिक को दूषित करने वाले कुल 32 दोष हैं,
जिनमें 10 मन के, 10 वचन के, और 12 काया के दोष शामिल हैं।
इन कार्यों से बचकर ही सामायिक की शुद्धता बनी रहती है,
जिससे यह धार्मिक क्रिया प्रभावी और फलदायी हो सके।

सामायिक क्या है?

सामायिक जैन धर्म की एक धार्मिक विधि है,
जिसमें सभी पाप कर्मों का त्याग किया जाता है।
जहाँ गुरु महाराज जीवन भर इसकी साधना करते हैं,
वहीं गृहस्थों के लिए यह ४८ मिनट का आत्म-शुद्धि का अभ्यास है।

दीपावली स्तवन

मारग देशक मोक्षनो रे केवल ज्ञान निधान । 
भाव दया सागर प्रभु रे पर उपगारी प्रधानो रे । 
वीर जिन सिद्ध थया, संग सकल आधारो रे 
हिव इन भरत मां, कुण करस्ये उपगारो रे । 

दीपावली की आरती

जय जय जगदीश जिनेसर जग तारन राजा 
धन धन किरति तेरी इन्द्र करत बाजा 
जय जय अविकारा तुम जग आधारा 
आरती अमर उतारा भव आरती टारा। जय... 

जैन दिवाली पूजन
जैन दिवाली पूजन

स्वः श्रियम् श्रीमद्ऽर्हन्तः, सिद्धाः सिद्धि पुरीपदम् । 
आचार्या : पंचाचार, वाचकां वाचनां वराम् ।।1।। 
साधवः सिद्धि साहाय्यं, वितन्वन्तु विवे किनाम् । 
मंगलानां च सर्वेषां, आद्यं भवति मंगलम् ||2|| 

जैनिज़्म

जैन धर्म भारत में जन्मा एक प्राचीन धर्म है, 
जो आध्यात्मिक शुद्धि और आत्मज्ञान का मार्ग सिखाता है। 
इसके मूल सिद्धांत सभी जीवित प्राणियों के प्रति,
सख्त अनुशासन और पूर्ण अहिंसा पर केंद्रित हैं। 

राजा श्रीपाल

यह कथा सिद्धचक्र के महत्व को दर्शाती है। 
राजा श्रीपाल का कुष्ठ रोग सिद्धचक्र के आराधन से ठीक हो गया था, 
और उन्हें आठ पत्नियाँ, नौ पुत्र, प्रचुर धन-संपत्ति
तथा नौ वर्षों तक निष्कंटक राज्य प्राप्त हुआ।