Namokar mantra, navkar mantra
"णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं
एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्पणासणो |
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं ||"
णमोकार मंत्र का अर्थ
णमो अरिहंताणं
(अरहंतों को मेरा नमस्कार हो)
अरिहंत वे आत्माएँ हैं जिन्होंने राग-द्वेष रूपी कर्म-शत्रुओं का नाश करके केवल ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त कर लिया है। वे इस लोक में जीवित रहते हुए भी पूर्ण ज्ञानी होते हैं और समस्त प्राणियों को मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
णमो सिद्धाणं
(सिद्धों को मेरा नमस्कार हो)
सिद्ध वे मुक्त आत्माएँ हैं जिन्होंने अष्ट कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय) का सर्वथा क्षय करके निज-आत्मरूप में अवस्थित हो गए हैं। उन्होंने जन्म-मरण की श्रृंखला को तोड़कर सिद्धि, मोक्ष या निर्वाण प्राप्त कर लिया है और वे शाश्वत सुख में लीन हैं।
णमो आयरियाणं
(धर्माचार्यों को मेरा नमस्कार हो)
आचार्य वे होते हैं जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच प्रकार के आचारों का स्वयं विशेष जागरूकता से पालन करते हैं और अपने शिष्यों से भी उनका पालन करवाते हैं। वे जैन संघ के प्रमुख और मार्गदर्शक होते हैं।
णमो उवज्झायाणं
(उपाध्यायों को मेरा नमस्कार हो)
उपाध्याय वे मुनि होते हैं जो विशेष रूप से धर्म शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन (पढ़ने और पढ़ाने) के कार्य को कुशलतापूर्वक संपादित करते हैं। वे संघ के भीतर शिक्षा के मुख्य स्तंभ होते हैं।
णमो लोए सव्व साहूणं
(लोक के सभी साधु-साध्वियों को मेरा नमस्कार हो)
साधु-साध्वी वे मुनि और आर्यिकाएँ (स्त्री साधु) हैं जो पंच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का पालन करते हैं, अठारह हज़ार गुणों को धारण करते हैं, और परम उपकारी होते हैं। वे संसार के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं।
एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं।।
यह पाँच प्रकार का नमस्कार (णमोक्कारो) सभी पापों का नाश करने वाला है। सभी मंगलों (शुभ बातों या मंत्रों) में यह सबसे पहला और परम मंगल है, जो परम शांति और शुद्धता प्रदान करता है।