प्रभू दर्शन की प्यास 

     तर्ज- साजन मेरा उस पार है 

 

प्रभु दर्शन की आज प्यास हैं। 

ढूंढू में तेरा कहां वास है 

 

मौसम भी आ पहुंचा पुण्याई का 

अब हमको डर कैसा है पापों का 

दुनिया का तू ही तारणहार हैं 

भक्तों जनोका तू आधार हैं ||१|| 

 

कमों से मुझे जुदा होना हैं 

मुक्ती नगर में मुझे जाना हैं 

अंतरवीना का तू तार हैं 

तीर्थ ही रणकार हैं ॥ २॥ 

 

कदमों मे युवक मंडल है 

ये तो जन्मों जन्मों का पुण्य है 

तेरे चरणों में मेरा तन मन है 

उससे मेरा जीवन है ॥३॥