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श्री मंगलदीवो

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चारो मंगल चार, आज घेर प्रभुजी पधार्या,

पहेले मंगळ प्रभुजीने पूजुं, घसी केसर घनसार, आज०

बीजे मंगळ अगर उखेवुं, कंठ ठबुं फूलहार, आज०

त्रीजे मंगळ आरती उतारुं, घंट बजावुं रणकार, आज०

चोथे मंगळ प्रभु गुण गाउं, नाचुं थेई थेईकार, आज०

रूपचंद कहे नाथ निरंजन, चरण कमळ बलिहार, आज०

 

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