Uvasggaharan, uvva, uvv, uvas, uvasg
"उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं ।
विसहर विस णिण्णासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।१।।"
अर्थ: प्रगाढ कर्म समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवन पार्श्वनाथ के में वंदना करता हूँ ।
"विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारेदि जो सया मणुवो ।
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।२।।"
अर्थ: विष को हरने वाले इस मन्त्ररुपी स्फुलिंग को जो मनुष्य सदेव अपने कंठ में धारण करता है, उस व्यक्ति के दुष्ट ग्रह, रोग बीमारी, दुष्ट, शत्रु एवं बुढापे के दुःख शांत हो जाते है ।
"चिट्ठदु दुरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होदी ।
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं।।३।।"
अर्थ: हे भगवान्! आपके इस विषहर मन्त्र की बात तो दूर रहे, मात्र आपको प्रणाम करना भी बहुत फल देने वाला होता है । उससे मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी दुःख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते है ।
"तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपायव सरिसे ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।"
अर्थ: वे व्यक्ति आपको भलीभांति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न के अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते है ।
"इअ संथुदो महायस!, भत्तिब्भरेण हिदयेण ।
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ।।५।।"
अर्थ: हे महान यशस्वी! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए" हृदय से आपकी स्तुति करता हूँ! हे देव! जिन चन्द्र पार्श्वनाथ! आप मुझे प्रत्येक भाव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करे ।
"ओं अमरतरु कामधेणु चिन्तामणि कामकुम्भमादिया |
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासततं ||६||"
अर्थ: श्री पार्श्वनाथ भगवान् की सेवा ग्रहण कर लेने पर ओम, कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिन्तामणि रत्न, इच्छापूर्ति करने वाला कलश आदि सभी सुखप्रदाता कारण उस व्यक्ति के दासत्व को प्राप्त हो जाते हैं |
"उवसग्गहरं त्थोतं, कादुणं जेण संघकल्लाणं |
करुणायरेण विहिदं, स भद्रबाहु गुरु जयदु ||७||"
अर्थ: जिन करुणाकर आचार्य भद्रबाहु के संघ द्वारा संघ के कल्याणकारक यह उवसगर्हर स्तोत्र निर्मित किया गया हैं, वे गुरु भद्रबाहु सदा जयवन्त हों |