बुधवार, 11 अक्तूबर 2023
Ungli Pakad Meri Chalna Sikhata Hai
(तर्ज : अंगुली पकड़ मेरी चलना)
अंगुली पकड़ मेरी, चलना सिखाता है,
चलना सिखाता है, चलना सिखाता है...
कभी तो ये दादा, मांझी बन जाता है,
कभी तो ये दादा, साथी बन जाता है...
नैया तिराता है, हमको बचाता है,
रस्ता दिखाता है, भवपार लगाता है... कभी तो ये दादा...
ठोकर लगी मुझको, पत्थर नुकीला था,
पर चोट न आई थी, दादा ने संभाला था... कभी तो ये दादा...
जो सुर में गाते हैं, सब उनसे राजी है,
जो मिल के गाते हैं, दादा उनसे राजी है... कभी तो ये दादा...
तुम मुझसे रूठोगे, तो हम किससे बोलेंगे,
दर तेरे खड़े होकर, छुप-छुप के रो लेंगे... कभी तो ये दादा...
पत्थर को भी दादा, पानी में तिराता है,
मेरी डुबती नैया को, भवपार लगाता है... कभी तो ये दादा ...