मुहपत्ती जैन परंपरा का एक अभिन्न अंग है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से जैन मुनि (महाराज साहाब), श्रावक और श्राविकाओं द्वारा सामायिक, पूजन, प्रवचन, और कई बार पूरे दिन किया जाता रहा है। यह जैन धर्म की केंद्रीय अवधारणा "अहिंसा परमो धर्म" को साकार करने में मदद करती है। मुहपत्ती एक विशेष चिज़ है, जो धार्मिक क्रियाओं के दौरान मुँह पर बाँधा जाता है, ताकि साँस लेते समय वायुमंडल में विचरते सूक्ष्म जीवों को हानि न पहुँचे। यह गर्म साँस या थूक से वायवीय जीवों को नुकसान होने से रोकती है और अनजाने में छोटे कीटाणुओं या सूक्ष्म जीवों के मुँह में प्रवेश करने की संभावना को भी कम करती है।
यह मुहपत्ती सफेद कपड़े से बनी है, जिसमें सुनहरे और सिल्वर रंग की कढ़ाई से ओघा का सुंदर डिज़ाइन बनाया गया है। ओघा की डंडी सुनहरे धागे से और इसके रेशे सिल्वर धागे से उकेरे गए हैं। छोटे-छोटे सुनहरे गुच्छों का विवरण इसे और आकर्षक बनाता है। यह डिज़ाइन सामायिक और पूजा के दौरान अहिंसा और पवित्रता के प्रतीक को और विशेष बनाता है।
मुहपत्ती न केवल जीव रक्षा का साधन है, बल्कि यह "वाणी पर संयम" का भी प्रतीक है, जो जैन परंपरा का एक और अद्भुत तत्व है। यह हर जीव के प्रति करुणा, सजगता और श्रद्धा को दर्शाती है, साथ ही हमें यह याद दिलाती है कि हमारी सजगता ही हमारी आध्यात्मिकता की पहचान है। इसका प्रयोग जैन अनुयायियों द्वारा अहिंसा और करुणा की भावना से किया जाता है, और इसे पहनना एक पुण्यदायक कार्य माना जाता है।
यह मुहपत्ती प्रभावना और जैन धर्म के दैनिक पूजा के लिए एक उत्तम उपहार है। यह अनुशासन और सभी जीवों से जुड़ाव का प्रतीक है। इस मुहपत्ती के साथ अपनी आध्यात्मिक यात्रा को और समृद्ध बनाएं और इसे आज ही प्राप्त करें!