मुहपत्ती जैन धर्म में विशेष धार्मिक क्रियाओं के दौरान मुँह पर बाँधा जाता है। यह कपड़ा वायुमंडल में विचरते सूक्ष्म जीवों की रक्षा के लिए एक सुरक्षात्मक अवरोध का कार्य करता है और साथ ही यह हर जीव के प्रति करुणा, सजगता और श्रद्धा का प्रतीक है।
मुहपत्ती मुँह को ढककर आवाज़ की तीव्रता को कम करती है, जिससे गर्म साँस या थूक से किसी भी वायवीय जीव को हानि नहीं पहुँचती। यह छोटे कीटाणुओं या सूक्ष्म जीवों के मुँह में अनजाने में प्रवेश करने की संभावना को भी कम करता है।
इसका प्रयोग जैन लोगो द्वारा अहिंसा और करुणा की भावना से किया जाता है, और इसे पहनना एक पुण्यदायक कार्य माना जाता है। यह प्रभावना का भी एक रूप है — जिसमें हर जीव की रक्षा का संकल्प छिपा होता है।
मुहपत्ती का प्रयोग न केवल अनुशासन का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हम सभी जीवों से जुड़े हुए हैं, और हमारी सजगता ही हमारी आध्यात्मिकता की पहचान है।
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