मेरे दादा की कहानी, कहती महरौली जुबानी
(तर्ज: मेरा जूता है जापानी...) 


मेरे दादा की कहानी, कहती महरौली जुबानी।

सर पे ताज है मणि का, दूजे दादा की निशानी।। 

                      || अन्तरा ।। 


विक्रमपुर का नन्हा बालक, दत्त शरण में आया-२ 


दीक्षा ले अल्पायु में ही, आचारज पद पाया-२ 

शोभा शासन की सुहानी, ऐसे थे वे ज्ञानी ध्यानी।। 

सर पे ताज है ||१||



वीतराग की अमर देशना, जन-जन तक पहुँचाने २ 

मायापुर नगरी में आए, धर्म की ज्योति जलाने-२ 

गूंजी महावीर की वाणीसुनकर तर गए लाखों प्राणी।। 

सर पे ताज है ॥२॥


अंत समय को निकट जानकर, संघ को पास बुलाया-२ 

न देना मुझे बीच वास तुम, मणि का भेद बताया-२ 

छाई चहुँ ओर विरानी, सबकी आँखों में था पानी।। 

सर पे ताज है ||३||


यही है मानक चौक जहाँ पर, गुरू की भस्म समाई - २ 

बीचवास दे दिया रथी को, मॅणि फकीर ने पाई-२ 

झुककर चरणों में हर प्राणी, बोले जय-जय मणिधारी।। 

सर पे ताज है ॥४॥