जहाँ नेमी के चरण पड़े

 

जहाँ नेमी के चरण पड़े

 

जहाँ नेमी के चरण पड़े, गिरनार वो धरती है

वो प्रेम मूर्ती राजूल, उस पथ पर चलती है

 

उस कोमल काया पर, हल्दी का रंग चदा

मेहंदी भी रुचीर रची, गले मंगल सुत्र पड़ा

पर मांग ना भर पायी, ये बात ही खलती है ॥ जहाँ ॥

 

सुन पशुओं का क्रुन्दन, तुमने तोड़े बंधन

जागा वैराग्य तभी, पा ली प्रभु पथ पावन

उस परम वैरागी से, चिर प्रीत उमड़ती है ॥ जहाँ ॥

 

राजूल की आंखों से, झर झर झरता पानी

अन्तर में घाव भरे, प्रभु दर्श की दीवानी

मन मन्दिर में जिसकी, तस्वीर उभरती है ॥ जहाँ ॥

 

नेमी जिस और गये, वही मेरा ठिकाना है

जीवन की यात्रा का, वो पथ अनजाना है

लख चरण चंद्र प्रभु के, राजूल कब रूकती है ॥ जहाँ ॥