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श्री पारसनाथ स्त्रोत्र
श्री पारसनाथ स्त्रोत्र
नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं,
शतेन्द्रं सु पूजैं भजै नाय शीशं ॥
मुनीन्द्रं गणेन्द्रं नमो जोडि हाथं,
नमो देव देवं सदापार्श्वनाथ। ॥1॥
तू मने भगवान
तू मने भगवान

तू मने भगवान एक वरदान आपी दे,
ज्या वसे छे तु मने त्या स्थान आपी दे...(2)
हु जिवु छु ऐ जगतमा ज्या नथी जीवन,
जिंदगी नु नाम छे बस बोझ ने बंधन,

करती हु तुम्हारी पूजा
करती हु तुम्हारी पूजा

दुनिया से मैं हारा
दुनिया से मैं हारा

दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहां से गर जो हारा, कहां जाऊंगा सरकार।
सुख में प्रभुवर तेरी याद ना आयी,
दुःख में प्रभुवर तुमसे प्रीत लगाई।

मेरी भावना
मेरी भावना

जिसने राग द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया
सब जीवोको मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया
बुध्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रम्हा, या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो ||1||