Personal menu
Search
You have no items in your shopping cart.

Samayik Sutra

"करेमि भंते ! सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि,
जाव नियमं पज्जुवासामि,
दुविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं,
न करेमि न कारवेमि, तस्स भंते।
पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।"

 

भावार्थ:-

हे भगवन् ! मैं सब पाप कार्यों का त्याग करके सामायिक करता हूँ। जब तक मैं इस नियम में रहूँगा, तब तक मन, वचन, काया के द्वारा इन पाप कार्यों को न तो करुंगा और न किसी से कराऊँगा। इसलिए भगवन्। गत पापों का प्रतिक्रमण यानि आलोचना, निंदा, गर्हा यानि आत्मा की साक्षी से निंदा (धृणा) करके उनका आत्मा से त्याग करता हूँ।

प्र. सावद्य योग से क्या मतलब है ?
उ. पाप वाले कार्यों को सावद्य कार्य कहते हैं।

प्र. पाप वाले कार्य कौन से हैं ?
उ. हिंसा-किसीको मारना, चोरी, झूंठ, बलात्कार, परिग्रह-संचय आदि कार्य पाप के कार्य हैं। वैसे धार्मिक कार्यों को छोड़कर सब कार्य पाप-कार्य हैं।

प्र. सामायिक किसे कहते हैं ?
उ. सम् - आयु - इक - सामायिक अर्थात् अच्छी प्रकार से आत्मा के समीप आना। आत्मा के शुद्ध भाव में आना ही सामायिक है।

प्र. सामायिक किसे कहते है ?
उ. जिसमें समाय यानि रागद्वेष रहित स्थिति का आय यानि लाभ हो वह समाय है। उसकी क्रिया सामायिक है।

प्र. सामायिक की क्रिया कौन कौन करता है ?
उ. स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी सामायिक कर सकते हैं।


Source-
Book Name: कुशल-विचक्षण ज्ञानाञ्जली

Leave your comment
*