सामायिक यह एक धार्मिक विधि विधान है। इस विधि को करते समय सभी पाप क्रियाओं का त्याग किया जाता है। हमारे गुरु महाराज तो जीवनपर्यन्त की सामायिक करते हैं तथा गृहस्थ की सामायिक एक अर्न्तमुहूर्त यानि ४८ मिनिट की होती है।
सामायिक आत्मशुद्धि की साधना है। इसमें मन-वचन-काया से किये जाने वाले तथा कराये जाने वाले पापों का त्याग किया जाता है। वास्तव में सामायिक समभाव की साधना है। समता भाव ही सामायिक आधारशिला है। राग और द्वेष को दूर करने का अभ्यास इससे किया जाता है। मन की एकाग्रता इससे की जाती है। सामायिक की साधना सर्वश्रेष्ठ और आत्मा के पूर्ण विकास की साधना है। सामायिक के बिना आत्मा का पूर्ण विकास सर्वथा असम्भव है। जैन आगम साहित्य में सामायिक की चर्चा और सामायिक का महत्त्व खूब बताया गया है।
जैन संस्कृति समभाव प्रधान संस्कृति है। जैनों में तो सामायिक का महत्त्व तपस्या से भी अधिक है। सामायिक में संयम होता है। संयम की साधना आत्मशुद्धि की साधना है। सामायिक करंनेवाला साधक सांसारिक वृत्तियों से मन-वचन-काया को हटाकर आत्मा की ओर ले जाता है। राग-द्वेष की दुर्भावना नष्ट होकर मैत्री की स्थापना इससे होती है। शत्रु मित्र हो जाते हैं समता से । अहिंसा की भावना इससे और अधिक बलवान् व दृढ़ होती है। जगत् के सारे जीवों के प्रति कल्याण-कामना के भाव सामायिक से जागृत होते हैं। इसलिये जैन मात्र का प्रथम कर्तव्य है कि एक सामायिक तो एक दिन में अवश्य की जानी चाहिए।
सामायिक करते समय ध्यान रखने योग्य बातें :-
१. सामायिक उनी आसन बिछाकर गुरुमहाराज अथवा स्थापनाजी के समक्ष करनी चाहिये।
२. सामायिक में स्त्री-पुरुष को व पुरुष स्त्री का स्पर्श नहीं करे।
३. सामायिक में कच्चा पानी, हरी सब्जियाँ, फूल, दीपक, अगरबत्ती, आदि अग्नि वाली वस्तुएँ, बिजली, फूलमाला, पंखा, अनाज, नमक आदि को नहीं छूना चाहिए।
४. सामायिक में चरवला लेकर ही खड़े हो सकते हैं।
५. सामायिक में बोलते समय मुँहपत्ति को मुँह के आगे रख कर बोलना चाहिए।
सामायिक में क्या किया जाय ? :
१. सामायिक में माला फेरी जा सकती है ।
२. स्वाध्याय अर्थात् धार्मिक पुस्तकों का पढ़ना, अभ्यास किया जाता है।
३. ध्यान-चिन्तन-मनन कर सकते हैं।
४. भजन-स्तवन-सज्जायादि उपयोग पूर्वक गा सकते हैं।
५. प्रतिक्रमण, देववन्दन, काउसग्ग आदि भी सामायिक में कर सकते हैं।
Source-
Book Name: कुशल-विचक्षण ज्ञानाञ्जली