मेरा छोटा सा संसार,
भेरू आजाओ एक बार (2)
भेरू आजाओ भेरू आजाओ ......
तुम दिनानाथ कहाते हो
Library > प्रभु भक्ति
मारा नाथनी बधाई बाजे छे,
मारा प्रभुनी बधाई बाजे छे,
शहनाई सुर नौबत बाजे,
और घनन घन गाजे छे.
लोक शिखर के वासी है प्रभु, तीर्थंकर सुपार्श्व जिनराज ।।
नयन द्वार को खोल खडे हैं, आओ विराजो हे जगनाथ ।।
सुन्दर नगर वारानसी स्थित, राज्य करे राजा सुप्रतिष्ठित ।।
पृथ्वीसेना उनकी रानी, देखे स्वप्न सोलह अभिरामी ।।
श्री जिनदेव को करके वंदन, जिनवानी को मन में ध्याय ।
काम असम्भव कर दे सम्भव, समदर्शी सम्भव जिनराय ।।
जगतपूज्य श्री सम्भव स्वामी । तीसरे तीर्थकंर है नामी ।।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले । भव दुख दुर भगाने वाले ।।
श्री सुमतिनाथ का करूणा निर्झर, भव्य जनो तक पहूँचे झर – झर ।।
नयनो में प्रभु की छवी भऱ कर, नित चालीसा पढे सब घर – घर ।।
जय श्री सुमतिनाथ भगवान, सब को दो सदबुद्धि – दान ।।
अयोध्या नगरी कल्याणी, मेघरथ राजा मंगला रानी ।।
श्री आदिनाथ को शिश नवा कर, माता सरस्वती को ध्याय ।
शुरू करूँ श्री अजितनाथ का, चालीसास्व – सुखदाय ।।
जय श्री अजितनाथ जिनराज । पावन चिह्न धरे गजराज ।।
नगर अयोध्या करते राज । जितराज नामक महाराज ।।
उत्तम क्षमा अदि दस धर्म,प्रगटे मूर्तिमान श्रीधर्म ।
जग से हरण करे सन अधर्म, शाश्वत सुख दे प्रभु धर्म ।।
नगर रतनपुर के शासक थे, भूपति भानु प्रजा पालक थे।
महादेवी सुव्रता अभिन्न, पुत्रा आभाव से रहती खिन्न ।।
सजी धजीने, बनी ठनीने,
खुब खुब मलकायजी
आ मारा महाराजजी ...
कदीक फूलोना हार पहेरे,
संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जय-सिरीइ दायारं।
समरामि भत्तपालग-निव्वाणी-गरुड-कयसेवं.. ||
ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संति-सामि-पायाणं।
झ्रौ स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिव-दुरिअ-हरणाणं.. ||
आगया, आगया, आगया,
आगया शरण तुम्हारी,
आगया आगया
सुनकर बिरद तुम्हारा तेरी शरण में आया,