Samrat Vikramaditya (सम्राट विक्रमादित्य)

सम्राट् विक्रमादित्य

भारतीय इतिहास में श्रीराम और श्रीकृष्ण के पश्चात् विक्रमादित्य ही ऐसा राजा हुआ जिसको
सम्पूर्ण भारत में न्याय-नीति के प्रतिष्ठापक एवं प्रजापालक के रूप में याद किया जाता है।
सम्राट् विक्रम के नाम से आज विक्रम संवत 2068 चल रहा है। इसके अनुसार विक्रमादित
को हुए इतना समय तो बीत ही चुका है। इतिहासकारों का मानना है कि ईस्वी पूर्व 56-57
के लगभग विक्रम संवत् का प्रारम्भ हुआ था। यह समय विक्रमादित्य के शासन का
सर्वाधिक शत और समृद्धि का समय था।
सम्राट् विक्रमादित्य स्वयं विद्वान थे, विद्वानों का आदर करते थे। सभी धर्मों व धर्मोचार्यों
का सम्मान करते थे। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य के शासन काल में हुये।
वे जैन इतिहास में एक युगप्रवर्तक साहित्यकार थे। न्याय एवं दर्शन आदि विषयों पर
उनके अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो अपने विषय के उच्चकोटि के ग्रंथ माने जाते हैं। जैन
इतिहास में आचार्य सिद्धसेन एक क्रांतिकारी और नवीन विचारधारा के पक्षपाती थे।
उन्होंने अपने ज्ञानवल और विद्यायल से जैनशासन क महान प्रभावना की सम्राट्
विक्रमादित्य आपकी विद्वत्ता और तपोबल से प्रभावित होकर जैनधर्मानुरागी बना।

विद्वद्रत्न प्रवचन प्रभावक आचार्यश्री जिनोत्तम सूरीश्वरजी म. सा. ने इस पुस्तक रचना कर हमें अनुग्रहीत किया है। 

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📚 Author / Publication Shree Diwakar Prakashan
🗣️ Language Hindi
📄 Pages 96
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