Shri Do Pratikraman Sutra (Vidhi Sahit) - Used book

प्रस्तावना 

      अनादि  अनंत कालसे चौरासी  लक्षयोनिमें  आत्माका परिभ्रमण चालू है। 
उसमे अंनत पूयोदयके कारन जैन धर्मकी प्राप्ति हुई। 
जय शासनमें आत्मशुद्धिके लिए धर्मक्रियाका महत्त्व बताया है। 
जैसे कपडे पर साबुन लगानेसे मैल दूर होकर वस्त्र उज्वल  बनता है,
वैसे हे जिन दर्शित क्रिया करनेसे आत्मा पर लगे हुए कर्मके थर दूर होते है
और आत्मा उज्वल बनता है।  

अनुक्रमणिका
1. विधिसहित चैत्यवंदन
    विधिसहित गुरुवंदन
2. श्री राईय प्रतिक्रमण विधिसहित
3. श्री देवसिय प्रतिक्रमण विधिसहित
4. पौषध लेनेकी विधि 
5. प्रतिक्रमण में छींक आनेसे आलोचना विधि 
6. स्तवनादि संग्रह 

Note:- Rs.20 handling charges are included in the selling amount.

Products specifications
📄 Pages 144
📚 Author / Publication Shree Jain Darshan Prakashan
🗣️ Language Hindi
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